Tuesday, February 15, 2011

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

मांगे टाँगे की क़बाएं देर तक रहती नहीं
यार लोगों के नसब अलक़ाब मत देखा करो 
Ahmad Faraz
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उसको खराब हालों से 
सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्मे नाज़ उसकी
सो  हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उसको भी है शेरो शाएरी से शगफ़ 
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
यह बात है तो चलो बात करके देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उसकी गज़ाल सी आँखें 
सुना है उसको हिरन दश्त भरके देखते हैं
सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमा फरोश आह भरके देखते हैं
सुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी
जो सादा दिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इलज़ाम धर के देखते हैं
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
के फूल अपनी क़बाएं कतर के देखते हैं
सुना है उसके शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
रुके तो गरदिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
कहानियाँ ही सही सब मुबाल्गे ही सही
अगर वह ख्वाब हैं ताबीर करके देखते हैं 
हम उसके शहर में ठहरें के कूच कर जाएँ 
फ़राज़ आओ सितारे सहर के देखते हैं    
Ahmad Faraz