Thursday, February 24, 2011

न गिला है दोस्तों का, न शिकायते ज़माना

तेरी बंदा परवरी से मेरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है दोस्तों का, न शिकायते ज़माना 
Allama Iqbal 
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गए थे ज़ोम में अपने ,पर उस को देखते ही 
जो दिल ने हम से कहे थे पयाम, भूल गए
Shah Zahooruddin Haatim
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सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है
Ameerullah Tasleem 

1 comment:

mcsayne said...

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