Tuesday, February 22, 2011

कोई महरम नहीं मिलता जहां में

हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न करदे 
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर
Mohsin Naqvi
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रोज़ मामूरए हस्ती में खराबी है ज़फर
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता
Bahadur Shah Zafar
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कोई महरम नहीं मिलता जहां में
मुझे कहना है कुछ अपनी ज़बां में
Altaf Husain Haali
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इरादे बांधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं वैसा न हो जाए
Hafeez Jaalandhari