Wednesday, February 23, 2011

जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

वक़्त ने वोह ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से
काफ़ले गुजरें फिर भी नक़शे पा कोई नहीं
Ahmad Faraaz 
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दरो दीवार पा हसरत की नज़र करते हैं
खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं
Wajid Ali Shah Akhtar 
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यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
Jigar Moradabadi 
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तेरे होंटों की ख़फी सी लर्ज़िश
इक हसीँ शेर हुआ हो जैसे
Sufi Ghulam Murtaza Tabassum