Monday, April 4, 2011

एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें

क्या ख़बर उनको के दामन भी भड़क उठते हैं
जो ज़माने की हवाओं से बचाते हैं चराग़
Ahmad Faraaz
एक आफत से तो मर मर के हुआ था जीना
पड़ गई और यह कैसी मेरे अल्लाह नई
Mir Soz
एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे, ऐसा भी नहीं
Firaaq Gorakhpuri
शिकम की आग लिए फिर रही है शहर बा शहर
सगे ज़माना हैं, हम क्या हमारी हिजरत क्या
Iftekhar Aarif   

Friday, April 1, 2011

क्या करेगा अगर सहर न हुई

दुनिया से जा रहा हूँ  कफ़न  में छुपाए मुंह 
अफसोस  बाद  मरने  के  आई  हमें हया
Unknown
हिज्र  की  रात  काटने वाले 
क्या करेगा अगर सहर न हुई
 Unknown