मैं न जुगनू हूँ ,दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं
Raahat Indori
आइने के सौ टुकडे करके हमने देखे हैं
एक में भी तनहा थे सौ में भी अकेले हैं
कुछ इस तरह से किया उसने मेरे ज़ख्मों का इलाज
मरहम भी लगाया तो कांटे की नोके से
दिन में जुग्नुवों को परखने की जिद करें
बच्चे मेरे अहेद के चालाक बहुत हैं
तश्नगी मेरी बुझादे तो मैं जानू वरना
तू समंदर है तो होगा मेरे किस काम का है
तू समंदर है तो होगा मेरे किस काम का है
Unknown