Thursday, February 24, 2011

न गिला है दोस्तों का, न शिकायते ज़माना

तेरी बंदा परवरी से मेरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है दोस्तों का, न शिकायते ज़माना 
Allama Iqbal 
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गए थे ज़ोम में अपने ,पर उस को देखते ही 
जो दिल ने हम से कहे थे पयाम, भूल गए
Shah Zahooruddin Haatim
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सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है
Ameerullah Tasleem 

Wednesday, February 23, 2011

जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

वक़्त ने वोह ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से
काफ़ले गुजरें फिर भी नक़शे पा कोई नहीं
Ahmad Faraaz 
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दरो दीवार पा हसरत की नज़र करते हैं
खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं
Wajid Ali Shah Akhtar 
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यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
Jigar Moradabadi 
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तेरे होंटों की ख़फी सी लर्ज़िश
इक हसीँ शेर हुआ हो जैसे
Sufi Ghulam Murtaza Tabassum

Tuesday, February 22, 2011

गोधरा का फैसला

आज गुजरात फसादात के सिलसिले में गोधरा में रेल डिब्बा जलाने की साज़िश और कारसेवकों को जिन्दा जलाने के इलज़ाम में गुजरात की अदालत ने 31 लोगों को मुजरिम ठहराया है और 61 लोगों को बा इज्ज़त बरी किया है. यह भी कहा है की यह 31 अफराद ने मुनज्ज़म साज़िश करके यह भयानक जुर्म किया है. 
जबकि पूरी दुनिया जानती है की अस्ल फसादात की साज़िश RSS की मदद से मोदी ने रची थी. पर्दाह उठ चूका है और उठने वाला है. यह नतीजा तो आना ही था . बकौल शाएर: 
उसी का शहर, वही मुद्दई , वही मुंसिफ
हमें यक़ीं है हमारा कुसूर निकलेगा 

कोई महरम नहीं मिलता जहां में

हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न करदे 
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर
Mohsin Naqvi
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रोज़ मामूरए हस्ती में खराबी है ज़फर
ऐसी बस्ती से तो वीराना बनाया होता
Bahadur Shah Zafar
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कोई महरम नहीं मिलता जहां में
मुझे कहना है कुछ अपनी ज़बां में
Altaf Husain Haali
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इरादे बांधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं वैसा न हो जाए
Hafeez Jaalandhari 

Monday, February 21, 2011

जब तक न मानिए उसे दिल मानता नहीं

एक दिल और ख्वास्तगार हज़ार 
क्या करूं यक अनार सद बीमार 
Meer Mahdi Majrooh
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सब कुछ खुदा से मांग लिया तुझ को मांग कर 
उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद
Agha Hashr Kashmiri
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यह भी तो इक दलील है उसके वोजूद की
जब तक न मानिए उसे दिल मानता नहीं
Shafeeq Jaunpuri
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वहशी हूँ मुझे दूर के जलवे नहीं भाते
मैं छू सकूं जिसको वह ओफ़ोक चाहिए मुझको 
M A Tashna

Sunday, February 20, 2011

यजीद मोर्चा जीता है जंग हारा है

जब तक है रूह जिस्म में चलते हैं हाथ पाँव
दूल्हा के दम के साथ यह सारी  बरात है
Khursheed Akbarabadi
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वकारे ख़ूने शहीदाने कर्बला की क़सम
यज़ीद मोर्चा जीता है जंग हारा है 
Diwakar Raahi 
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जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
जो अश्कों ने भड़काई है उस आग को ठंडा कौन करे
Moin Ahsan Jazbi

Saturday, February 19, 2011

इश्क़ पाबंदे वफ़ा है

ग़मो गुस्साओ रंजो अन्दोहो हिरमां
हमारे भी हैं मेहेरबां कैसे कैसे 

Haider Ali Aatish
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इश्क़ पाबंदे वफ़ा है, न के पाबंदे रुसूम
सर झुकाने को नहीं कहते हैं सजदा करना 

Abdul Baari Aasi 
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मोहब्बत ज़िन्दगी की सब से मुश्किल आज़माइश है
मगर यह आज़मा लेने के काबिल आज़माइश है 
Niyaaz Haider

Friday, February 18, 2011

रोज़ का आना जाना

गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है अमीर 
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
Amir Minaai 
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देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
Andalib Shadaani

Tuesday, February 15, 2011

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

मांगे टाँगे की क़बाएं देर तक रहती नहीं
यार लोगों के नसब अलक़ाब मत देखा करो 
Ahmad Faraz
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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उसको खराब हालों से 
सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्मे नाज़ उसकी
सो  हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उसको भी है शेरो शाएरी से शगफ़ 
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
यह बात है तो चलो बात करके देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उसकी गज़ाल सी आँखें 
सुना है उसको हिरन दश्त भरके देखते हैं
सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमा फरोश आह भरके देखते हैं
सुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी
जो सादा दिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इलज़ाम धर के देखते हैं
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
के फूल अपनी क़बाएं कतर के देखते हैं
सुना है उसके शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
रुके तो गरदिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
कहानियाँ ही सही सब मुबाल्गे ही सही
अगर वह ख्वाब हैं ताबीर करके देखते हैं 
हम उसके शहर में ठहरें के कूच कर जाएँ 
फ़राज़ आओ सितारे सहर के देखते हैं    
Ahmad Faraz

Sunday, February 13, 2011

अल्लामा बना डाला

किसी भोलू को जब चाहा यहाँ गामा बना डाला
किसी पतलून को जब खींचा पाजामा बना डाला
जो शाएद मेट्रिक कर के समंदर पार आए थे 
उन्हें यारों ने अमरीका में अल्लामा बना डाला 
Dilawar Fegaar
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मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों में 
तुझे लिख्खुं तो मेरी उंगलियाँ ऐसे धड़कती हैं 
Bashir Badr
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मुक़द्दर का सिकंदर हो गया हूँ
मैं क़तरा था समंदर हो गया हूँ
भटकने का कोई खदशा नहीं है 
मैं खुद अपना ही रहबर हो गया हूँ
अना ने खींच ली है मेरी वुसअत
बहुत छोटा सिमट कर हो गया हूँ 
Dr. Faruq Shakeel (Hyderabad)

Saturday, February 12, 2011

ज़िन्दान की एक सुब्ह

दूर दरवाज़ा खुला कोई, कोई बंद हुआ 
दूर मचली कोई ज़ंजीर, मचल कर रोई
दूर उतरा कोई ताले के जिगर में ख़ंजर
सर पटकने लगा रह रह के दरीचा कोई 
Faiz Ahmad Faiz
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ग़म न कर, अब्र खुल जाएगा 
रात ढल जाएगी, रुत बदल जाएगी
Faiz Ahmad Faiz
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यह दाग़ दाग़ उजाला यह शब् गज़ीदा सहर
वह इंतज़ार था जिसका यह वह सहर तो नहीं 
Faiz Ahmad Faiz

Friday, February 11, 2011

दीवाना बना देते हैं

कुछ तो होते हैं मोहब्बत में जुनू के आसार
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं
Zaheer Dehlavi
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इक वज़अ पे नहीं है ज़माने का तौर, आह
मालूम हो गया मुझे लैलो नहार से 
Rajab Ali Suroor
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कौन मुझ से पूछता है रोज़ इतने प्यार से
काम कितना हो चूका है, वक़्त कितना रह गया
Hasan Naeem 

Thursday, February 10, 2011

आँखों में थे

तू कहाँ था ज़िन्दगी के रोजोशब आँखों में थे
आज याद आया के आंसू बेसबब आँखों में थे 
Ahmad Faraz
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इस गैरते नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
Momin Khan Momin
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दस्तो पा शल हैं किनारे से लगा बैठा हूँ
लेकिन इस शूरिशे तूफ़ान से हारा तो नहीं
Waamiq Jaunpuri 

शोहरत और बदनामी

हम तालिबे शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम 
बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा 
Mustafa Khan Shefta
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उठो व गर न हश्र न होगा कभी बपा
दौड़ो ज़माना चाल क़यामत की चल गया 
Shah Deen Humanyun
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फुटपाथ पर जो लाश पड़ी है उसी की है 
जिस गाँव को यक़ीं था की रोज़ी रसा है शहर 
Aziz Qaisi