मैं तो फरयाद भी करने नहीं दर दर निकला
दर्द की आह भी सीने में दबा कर निकला
आंसुओं को मेरे शिक्वाह न समझ ले कोई
जब भी बाज़ार में निकला तो संभल कर निकला
याद ने उस घडी दिल पर बड़ी दस्तक दी है
चौदहवीं रात में जब चाँद उभर कर निकला
चाँद सूरज का निकलना तो तिरा सदका है
हाँ मगर तू अभी परदे से न बाहर निकला
ज़िक्रे शब्बीर फरिश्तों से भी तुला न गया
कसरे जन्नत मिरे अश्कों के बराबर निकला
कुल्ले ईमान की मसनद पे उन्हें लाए हैं
जिनका ईमान खजूरों के बराबर निकला
दर्द की आह भी सीने में दबा कर निकला
आंसुओं को मेरे शिक्वाह न समझ ले कोई
जब भी बाज़ार में निकला तो संभल कर निकला
याद ने उस घडी दिल पर बड़ी दस्तक दी है
चौदहवीं रात में जब चाँद उभर कर निकला
चाँद सूरज का निकलना तो तिरा सदका है
हाँ मगर तू अभी परदे से न बाहर निकला
ज़िक्रे शब्बीर फरिश्तों से भी तुला न गया
कसरे जन्नत मिरे अश्कों के बराबर निकला
कुल्ले ईमान की मसनद पे उन्हें लाए हैं
जिनका ईमान खजूरों के बराबर निकला
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