Saturday, June 18, 2011

मुझ से मिलना, बात करना, देखना, अच्छा लगा

बादलों  का  काफिला  आता  हुआ  अच्छा  लगा 
प्यास की धरती को हर सावन बड़ा  अच्छा  लगा 
उस  भरी  महफिल  में  उस  का  चंद  लम्हों  के  लिए 
मुझ  से  मिलना,  बात  करना, देखना, अच्छा  लगा 
जिन का सच होना किसी सूरत से भी मुमकिन न था 
ऎसी   ऎसी   बातें   अक्सर   सोचना   अच्छा  लगा 
वो तो क्या आता मगर खुशफहमियों के साथ साथ 
सारी  सारी   रात   हम   को   जागना   अच्छा  लगा 
पहले  पहले  तो  निगाहों  में  कोई  जचता  न  था 
रफ्ता  रफ्ता  दूसरा   फिर  तीसरा  अच्छा  लगा
Unknown

1 comment:

Anonymous said...

Nice poetry....