Wednesday, June 1, 2011

जिनका ईमान खजूरों के बराबर निकला

मैं  तो  फरयाद  भी  करने  नहीं  दर  दर  निकला
दर्द  की  आह  भी  सीने  में  दबा  कर  निकला
आंसुओं   को  मेरे  शिक्वाह  न  समझ  ले  कोई
जब भी  बाज़ार  में  निकला  तो  संभल  कर  निकला
याद  ने  उस  घडी दिल  पर  बड़ी  दस्तक  दी  है
चौदहवीं   रात  में  जब  चाँद  उभर  कर  निकला
चाँद  सूरज  का  निकलना  तो  तिरा  सदका  है
हाँ  मगर  तू  अभी  परदे  से न  बाहर  निकला
ज़िक्रे  शब्बीर  फरिश्तों  से  भी  तुला  न  गया
कसरे  जन्नत  मिरे  अश्कों   के  बराबर  निकला
कुल्ले  ईमान  की  मसनद  पे  उन्हें  लाए  हैं
 जिनका  ईमान  खजूरों  के  बराबर  निकला