Wednesday, June 15, 2011

ये मीर अनीस की , आतिश की गुफ्तगू तो नहीं

मैं  वो  चराग़े  सरे  राह्गुज़ारे  दुनिया  हूँ 
जो अपनी ज़ात की तन्हाईयों में जल जाए 
Obaidullah Aleem
अज़ा  में  बहते  थे  आंसू  यहाँ , लहू  तो  नहीं 
ये  कोई  और  जगह  है  ये  लखनऊ  तो  नहीं 
यहाँ  तो  चलती  हैं  छुरियाँ  जुबान  से  पहले 
ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ्तगू  तो नहीं 
चमक रहा है जो दामन पे दोनों फिरकों के 
बगौर  देखो  ये  इस्लाम  का  लहू  तो  नही
Kaifi Aazmi