अजब वाइज़ की दीँदारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से
कोई अब तक न ये समझा क इन्सां
कहाँ जाता है आता है कहाँ से
कोई अब तक न ये समझा क इन्सां
कहाँ जाता है आता है कहाँ से
वहीँ से रात को ज़ुल्मत मिली है
चमक तारों ने पाई है जहाँ से
हम अपनी दर्दमंदी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राजदां से
बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
चमक तारों ने पाई है जहाँ से
हम अपनी दर्दमंदी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राजदां से
बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़े अजाँ से
Allama Iqbal
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