Thursday, March 10, 2011

उठ उठ के देखती रही गरदे सफ़र मुझे

पूरा भी होके जो कभी पूरा न हो सका
तेरी निगाह का वो तकाज़ा है आज तक
Feraaq Gorakhpuri
हयातो मौत भी अदना सी इक कड़ी मेरी
अज़ल से लेके अबद तक वोह सिलसिला हूँ मैं
Asghar Gondawi
दामन झटक के वादिए  ग़म से गुज़र गया
उठ उठ के देखती रही गरदे सफ़र मुझे
Ali Sardar Jafri
दोहराता  नहीं मैं भी गए लोगों की बातें 
इस दौर को निस्बत भी कहानी से नहीं है
Shahryar

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