Thursday, March 24, 2011

यह मुंबई किसी सहरा में इक चट्टान सा है

महक न फूलों की इस में न पंछियों की चमक
यह  मुंबई  किसी सहरा  में  इक चट्टान सा है

लगाकर  कान  कब्रस्तान  में सुन
के है ज़ेरे ज़मीं कोहराम क्या क्या

यह औरत और पानी एक से औसफ के हामिल
बना  लेते  हैं दोनों रफ्ता रफ्ता  रास्ता  अपना
Irtiza Nishaat