Urdu Kavita
Thursday, March 22, 2012
जिस क़दर उस ने खुद नुमाई की
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ज़ख्म ही यह मुझे लगता नहीं भरने वाला
Parveen Shakir
राज़ खुलते गए मेरे सब पर
जिस क़दर उस ने खुद नुमाई की
Mirza Qurbaan Ali Saalik
कल तलक तो महरम थे,हमनवा थे, साथी थे
वक़्त के बदलते ही हर कोई मुखालिफ है
Ahmad Raees
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