Monday, March 19, 2012

ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को

कभी कहा न किसी से  तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गई ज़माने को
चमन में बर्क नहीं छोडती किसी सूरत
तरह तरह से बनाता हूँ आशिआने को
दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले
कहीं जगह न मिली मेरे आशिआने को
मेरी लहेद प पतंगों का खून होता है
हुज़ूर शमआ न लाया करें जलाने को
सुना है गैर की महफ़िल में तुम न जाओगे 
कहो तो आज सजा लूं ग़रीब ख़ाने को
 दबा के कब्र में सब चल दिए न दुआ न सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
अब आगे इस  में तुम्हारा भी नाम आएगा
जो हुक्म हो तो यहीं छोड़ दूं फ़साने को
Qamar Jalaalvi