Sunday, March 4, 2012

यह झूटी सच्ची सताइश क्या अजब शै है

ग़मों की भीड़ में उम्मीद का वह आलम है
के जैसे एक सख़ी हो कई गदाओं में
Baaqi Siddiqi
ज़मीं पे पाँव भी चाहें तो रख नहीं सकते
यह झूटी सच्ची सताइश क्या अजब शै है
Suhail Ghazipuri