Thursday, March 22, 2012

जिस क़दर उस ने खुद नुमाई की

क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ज़ख्म ही यह मुझे लगता नहीं भरने वाला
Parveen Shakir
राज़ खुलते गए मेरे सब पर
जिस क़दर उस ने खुद नुमाई की
Mirza Qurbaan Ali Saalik
कल तलक तो महरम थे,हमनवा थे, साथी थे
वक़्त के बदलते ही हर कोई मुखालिफ है
Ahmad Raees

Monday, March 19, 2012

ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को

कभी कहा न किसी से  तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गई ज़माने को
चमन में बर्क नहीं छोडती किसी सूरत
तरह तरह से बनाता हूँ आशिआने को
दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले
कहीं जगह न मिली मेरे आशिआने को
मेरी लहेद प पतंगों का खून होता है
हुज़ूर शमआ न लाया करें जलाने को
सुना है गैर की महफ़िल में तुम न जाओगे 
कहो तो आज सजा लूं ग़रीब ख़ाने को
 दबा के कब्र में सब चल दिए न दुआ न सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
अब आगे इस  में तुम्हारा भी नाम आएगा
जो हुक्म हो तो यहीं छोड़ दूं फ़साने को
Qamar Jalaalvi

Sunday, March 4, 2012

भूके ही सो गए बच्चे मेरे रोते रोते

फिर ख़यालों में कोई आ गया सोते सोते
आज की रात भी कट जाएगी रोते रोते
हम को आया नहीं चेहरे की सफाई का ख़याल
बस परेशान रहे आईना धोते धोते
अब किसी पेड़ पे लगते नहीं अखलाक़ के फल
ज़िन्दगी थक गई इस  बीज को बोते बोते
इशक़ तो रिस्ता हुआ ज़ख्म है दिल के हक़ में
दाग़ होता तो निकल जाता वह धोते धोते
एक माँ हो गई बेहोश यह कह कर मोहसिन
भूके ही सो गए बच्चे मेरे रोते रोते 
Mohsin Ummeedi Burhanpuri

यह झूटी सच्ची सताइश क्या अजब शै है

ग़मों की भीड़ में उम्मीद का वह आलम है
के जैसे एक सख़ी हो कई गदाओं में
Baaqi Siddiqi
ज़मीं पे पाँव भी चाहें तो रख नहीं सकते
यह झूटी सच्ची सताइश क्या अजब शै है
Suhail Ghazipuri

Friday, March 2, 2012

रवाँ है काफ़ला तस्कीने राहबर के लिए

न अब वह ज़ौके तलब है, न अब वह अजमे सफ़र
रवाँ   है   काफ़ला   तस्कीने   राहबर   के   लिए 
Hafeez Hoshiarpuri