वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है
मैं ये मानता हूँ मेरे दिये तेरी आँधियोँ ने बुझा दिये
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
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इबादतों की तरह मैं ये काम करता हूँ
मेरा उसूल है, पहले सलाम करता हूँ
मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ
मैं अपनी जेब में अपना पता नहीं रखता
सफ़र में सिर्फ यही एहतमाम करता हूँ
मैं डर गया हूँ बहुत सायादार पेड़ों से
ज़रा सी धूप बिछाकर क़याम करता हूँ
मुझे ख़ुदा ने ग़ज़ल का दयार बख़्शा है
ये सल्तनत मैं मोहब्बत के नाम करता हूँ
Bashir Badr
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