Saturday, January 14, 2012

न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो


साफ़ मैदाँ ला मकाँ सा हो तो मेरा दिल खुले
तंग हूँ मामूरए दुनिया की दीवारों के बीच
Mir Taqi Mir

शर्म आती है कि इस शहर में हम हैं के जहाँ 
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
Jaan Nisaar Akhtar

चला गया मगर अपना निशान छोड़ गया
वह शहर भर के लिए दास्तान छोड़ गया
Sayed Hasan Nasir

Wednesday, January 11, 2012

शरीके मारकए हक सभी नहीं होते


बेखुदी बेसबब नहीं ग़ालिब 
कुछ तो है जिसकी पर्दा दारी है 
Mirza Ghalib

सहराए गुफ्तगू से न आगे बढे क़दम
गम उसकी वुसअतों में हर इक कारवाँ हुआ
Jigar Muradabadi

ताने अग्यार सुनें आप खमोशी से शकीब
खुद पलट जाती टकरा के सदा पत्थर से 
Shakeeb Jalali

शरीके मारकए हक सभी नहीं होते
मेरे भी साथ थीं अहबाब की सफें कितनी 
Bashar Nawaz

Sunday, January 1, 2012

आ नए साल बता कैसे मुबारक मैं कहूँ ??


आ  नए  साल  बता  कैसे  मुबारक  मैं  कहूँ ??
लाश  शब्बीर  की  मकतल  में  पड़ी  है  अब   भी 
मेरी  आँखों  में  अभी  शाम  के  कैदी  हैं  बसे 
सहन  में  मेरे  अभी  शामे गरीबाँ  की  सियाही  है  बिछी
मेरा  मलबूस  तो  देख  अब  भी  सोगवार  हूँ  मैं ,
देख  मातम  में  है  सारा  यह  कबीला  मेरा ..
आ  नए  साल  बता  तू  ही  बता  दे  मुझको ,
क्या  कहूँ ?कैसे  मैं  खुश  रंग  क़बा  को  ओढ़ूँ ?
ख़ाक  ओढ़े  अभी  कोनें  की  शहजादी  है ..
सरे मजलूम  सिना  पर  है  तिलावत  करता ,
कोई  बीमार  जो  माँ  बहनों  की  चादर  पे  लहू  रोता  है  ,
कैसे  उसको  मैं  बताऊँ  के  तू  फिर  आया  है  ..
जो  के  ज़िन्दान  में  लम्हों  को  गिना  करती  है ??
वो  यातीमान  के  जो  ढलती  हुई  शामों  में  परिंदों  का  पता  पूछती  है ?
आ  नए  साल  बता  रंग  भरूँ  कोनसा  मैं ?
वोह  जो  सुर्खी  सरे अफ्लाक  है  खूने दिल  की ?
या  सियाही  जो  सरे शामे गरीबां  फैली ?
या  सफैदी  जो  किसी  बीमार  के  बालों  में  उतर  आई  है ?
आ  नए  साल  की  रानाई  चली  जा  के  यहाँ 
मातमी  लोग  हैं  और ,
बिखरे  है  मिटटी  पे  गुलाब ..
बैन  करती  हुई  पियासों  पे  ग़मज़दा  आँखें ..
अपने  पियारों  को  बनाए  है  सदका  शेह  का ,
माओं  बहनों  की  सिसकती  हुई  ज़ख़्मी  आँखें ..
तुझ  से  हो  पाए   तो  बस  काम  यह  इतना  कर  दे ..
खून  का  रंग  फ़क़त  अपनी  क़बा  से  धो  दे!!!