Saturday, January 14, 2012

न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो


साफ़ मैदाँ ला मकाँ सा हो तो मेरा दिल खुले
तंग हूँ मामूरए दुनिया की दीवारों के बीच
Mir Taqi Mir

शर्म आती है कि इस शहर में हम हैं के जहाँ 
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
Jaan Nisaar Akhtar

चला गया मगर अपना निशान छोड़ गया
वह शहर भर के लिए दास्तान छोड़ गया
Sayed Hasan Nasir