Wednesday, December 28, 2011

चराग़े फ़िक्र यकीनन बुझा के सोते हैं


चराग़े  फ़िक्र  यकीनन  बुझा  के सोते  हैं 
मगर  नसीब  की  शम्मा   जला  के  सोते  है 
________________________

वही हम थे जो रोतों को हंसा देते थे
अब यह हाल के थमता नहीं आंसू मेरा
Daagh Dehlavi

तरके ताल्लुकात को इक लम्हा चाहिए 
लेकिन तमाम उम्र मुझे सोचना पड़ा
Fana Nizami Kanpuri

Sunday, December 25, 2011

मेरी हयात बहुत पुर बहार गुजरी है


ये कैसे कह दें के सब खुशगवार गुजरी है
मगर जो गुजरी है वोह बा वक़ार गुजरी  है

जो चूर चूर हुआ जा रहा है आईना 
कोई निगाह उसे नागवार गुजरी है

बदन की चोट तो मैं सह गया ब आसानी
नज़र की मार मगर मुझ प बार गुजरी है

वोह जिस के साथ यहाँ काएनात चलती थी
खुद उसकी उम्र बहुत सोगवार गुजरी है

कभी लहू तो कभी पथ्थरों की बारिश में
मेरी हयात बहुत पुर बहार गुजरी है

नवीदे फ़तह मुबारक हो आप को तारिक
लहू की धार से खंजर की धार गुजरी है.
Shamim Tariq

Thursday, December 22, 2011

अजीब धुप थी साए थकन उतारते थे


परिंदे  मौसमे गुल  को  जहाँ  पुकारते   थे 


अजीब  धूप   थी  साए थकन  उतारते  थे