सच कहूँ मुझ को यह उन्वान बुरा लगता है
ज़ुल्म सहता हुआ इंसान बुरा लगता है
किस क़दर हो गई मसरूफ यह दुनिया अपनी
एक दिन ठहरे तो मेहमान बुरा लगता है
उन की खिदमत तो बहुत दूर बेटों बेटियों की
बूढ़े माँ बाप का फरमान बुरा लगता है
मेरे अल्लाह मेरी नस्लों को ज़िल्लत से निकाल
हाथ फैलाए हुए मुसलमान बुरा लगता है
2 comments:
😢😢😢
Nice
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