चराग़े फ़िक्र यकीनन बुझा के सोते हैं
मगर नसीब की शम्मा जला के सोते है
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वही हम थे जो रोतों को हंसा देते थे
अब यह हाल के थमता नहीं आंसू मेरा
Daagh Dehlavi
तरके ताल्लुकात को इक लम्हा चाहिए
लेकिन तमाम उम्र मुझे सोचना पड़ा
Fana Nizami Kanpuri